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आर्य समाज की देन

युग प्रवर्त्तक महर्षि दयानन्द ने 1875 में वैचारिक क्रान्ति के लिए आर्य समाज को स्थापित किया। इससे पूर्व देश धार्मिक, सांस्कृतिक, राष्ट्रीय, सामाजिक आदि भी क्षेत्रों में अध:पतन की ओर बढ रहा था। चारो ओर अविद्या और अन्धकार फैला हुआ था। ऐसे निराशा के समय में ऋषि दयानन्द का संसार में आना निश्चय ही वरदान सिद्ध हुआ। चौदह वर्ष की अल्पायु में सत्यबोध हुआ। वे दुनियॉं के सामने एक अनोखी और निराली पहिचान बनकर खड़े हुए। उनके व्यक्तित्व में भीष्मपितामह जैसा अखण्ड ब्रह्मचर्य, शंकराचार्य जैसा अगाध पाण्डित्य, योगीराज श्री कृष्ण जैसी खण्ड-खण्ड भारत को अखण्ड देखने की भावना, मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम जैसा तप-त्याग तपस्या, गौतम जैसी करुणा, महावीर जैसी अहिंसा, उनके व्यक्तित्व में सभी महापुरुषों की विशेषताओं का समन्वय था। उनकी विचारधारा का उत्तराधिकारी आर्यसमाज है। आर्यसमाज ने संसार को प्रत्येक क्षेत्र में दृष्टि व चिन्तन दिया है।

Ved Katha Pravachan - 2 (Explanation of Vedas & Dharma) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha
Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev
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वेद विषयक देन-वेद मानव जाति के सबसे प्राचीनपवित्र और महत्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। उनमें सब सत्य विद्याओं तथा ज्ञान-विज्ञान का भण्डार है। आर्य समाज वेदों की ओर चलो का नारा देता है । सृष्टि के आरम्भ में परमेश्वर ने मानव के कल्याणउत्थान एवं मंगल के लिए वेद ज्ञान दिया। अत: वेद ईश्वरीय ज्ञान हैं और स्वत: प्रमाण हैं। इसलिए वेद सबके हैंसबके लिए हैं तथा सबको स्त्रीशूद्र आदि को पढने का अधिकार है। वेद मानवता का चिन्तन देते हैं। वेद कहते हैं  मनुर्भवमनुष्य! तू मानव बनकर स्वयं सुख-शान्ति पूर्वक संसार यात्रा पूर्ण कर और दूसरों को भी जीने दे। आर्य समाज ने वेदों का पुनरुद्धार किया। वेदों के बारे में हुई भ्रान्त धारणाओं को तर्क प्रमाण एवं युक्ति से निरस्त किया। वेदों का यथार्थ और सच्चा स्वरूप संसार के सामने रखा।

धार्मिक देन-आर्य समाज ने धर्म के क्षेत्र में फैले हुए अन्धविश्वासढोंगपाखण्ड और रूढिवादिता को समाप्त कर धर्म का सच्चा स्वरूप जनता के सामने रखा। धर्म में अकल का दखल देकर उसे व्यावहारिक तथा वैज्ञानिक रूप दिया। धर्मं धारण करने की चीज हैं। धर्म का सम्बन्ध आत्मा से है। आर्य समाज की विचारधारा मूर्तिपूजाअवतारवादजादू-टोनाजड़ देवी-देवताओं आदि में विश्वास नहीं करती है। धर्म मन्दिरोंपुजारियोंतीर्थोंआदि तक ही सीमित नहीं है। वह तो मनुष्य के आचरण के साथ जुड़ा है। सभी को सब काम धर्मानुसार सत्य और असत्य को विचार करके करने चाहिएं। धर्म के नाम पर जो अधर्म और नाना पन्थ सम्प्रदाय फैल रहे थे तथा भोली-भाली जनता को धर्म का भय दिखाकर जो ठगा जा रहा थाउसे आर्य समाज ने हटाया और लोगों को बताया कि धर्म को पहिचानोसम्प्रदायों को छोड़ो। सम्प्रदाय परस्पर झगड़े कराते हैं। धर्म मिलकर शान्तिपूर्वक व प्रेम से जीना सिखाता है।

सामाजिक देन- आर्य समाज के उदय से पूर्व लोग नाना प्रकार के पापकर्म तथा पाखण्ड में लिप्त थे। स्त्री जाति की दशा बड़ी शोचनीय थी और उसे नरक का द्वार माना जाता था। लोग छूतछातअन्धविश्वासभूत-प्रेतमत-मतान्तरादि में लिप्त थे। लुप्त वर्णाश्रम व्यवस्था की स्थापना का बीड़ा इस संस्था ने उठाया। जन्मना वर्ण-व्यवस्था को तोड़कर कर्मणा व्यवस्था पर बल दिया। सभी मनुष्य समान हैं। उद्यम पुरुषार्थ व लगन के आधार पर मनुष्य जो कुछ बनना चाहे बन सकता है। सबको उन्नति करने का समान अधिकार है। समाज में व्याप्त अनेक प्रकार की कुरीतियोंअन्धविश्वासों तथा रूढियों को हटाकर आर्य समाज ने दुनियां को एक नई रोशनी दी। शुद्धि आन्दोलन के द्वारा भूले-भटके व बिछुड़े अपने ही भाइयों को पुन: वैदिक धर्म में दीक्षित होने का आन्दोलन चलाया। बाल-विवाहअनमोल विवाह एवं सती प्रथा जैसी कुरीतियों से देश जर्जरित हो रहा थाआर्य समाज ने खुलकर इसका विरोध किया। लोगों को तर्क प्रमाण और युक्ति से समझाया व जाग्रत किया। इसी से आज इन प्रथाओं का प्रचलन कम हुआ है। पैगम्बरोंजड़ देवी-देवताओंमहन्त आदि के प्रति अन्ध श्रद्धा से समाज खोखला हो रहा था। उसका आर्य समाज ने खण्डन किया। जो सत्यमार्ग थाउसका दिग्दर्शन कराया।

नारी जाति की देन-आर्य समाज ने स्त्रियों को यज्ञोपवीत धारण करनेवेद पढनेयज्ञ करने और सामाजिक जीवन में पुरुषवर्ग के समान सब अधिकार दिए और दिलाये हैं। नारी को भोग्या से मातृशक्ति के पद पर प्रतिष्ठित करने का श्रेय आर्य समाज को है। नारी जाति के साथ जो पशुता व बर्बरता पूर्ण व्यवहार होता थाउसका आर्यसमाज ने खुलकर विरोध किया। जनता में जागृति पैदा कर कहा कि यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:। जहॉं नारी का सम्मान होता हैवहॉं सब प्रकार से शान्ति व प्रसन्नता रहती है। नारी नरक का द्वार है और ताड़न की पात्रऐसे अव्यावहारिक व अवैदिक तथ्यों का आर्य समाज ने डटकर विरोध किया। प्रमाण तथा उदाहरणों से सिद्ध किया कि नारी ही स्वर्ग का आधार है। माता ही निर्माता है। आर्य समाज ने नारी शिक्षा के द्वार खोल दिए। नारी शिक्षा के क्षेत्र में आर्य समाज का स्मरणीय योगदान है।

राष्ट्रीयता की देन- आर्यसमाज की विचारधारा में आदि से अन्त तक राष्ट्रिय चेतना और देश के प्रति कर्त्तव्य की भावना कूट-कूट  कर भरी है। स्वतन्त्रता संग्राम के आन्दोलन में इस संस्था की भूमिका सदा स्मरणीय रहेगी। आर्य समाज की राष्ट्रीय भावना से प्रेरित होकर लोग आजादी के लिए निकल पड़ेशहीए हो गए। इतिहास साक्षी है कि लड़ाई में सक्रिय भाग लेने वाले अधिकांश आर्यसमाजी थे। स्वाधीनता संग्राम में ऋषि दयानन्द की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वे स्वदेशी शासन के प्रबल पक्षधर थे। आर्य समाज की विचारधारा में स्वदेशस्वसंस्कृतिस्वसभ्यता और स्वभाषा पर विशेष बल दिया गया है। देश की आन-बान व शान सर्वोपरि है। जिस देश में जन्म लिया उसके प्रति हमें सदैव कृतज्ञ रहना चाहिए। आर्यसमाज ने देश की अखण्डताएकतासंस्कृतिसभ्यता और आत्म गौरव की सुरक्षा के लिए सदा जागरूक पहरेदार की भूमिका निभाई है।

हिन्दी भाषा की देन- भाषा की दृष्टि से आर्यसमाज का राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भाषा देश की आत्मा होती है। बिना स्वभाषा के देश गूंगा होता है। आर्यसमाज के प्रर्वत्तक स्वामी दयानन्द स्वयं गुजराती होते हुए तथा संस्कृत के उद्‌भट विद्वान होने पर भी लेखनप्रकाशन और शास्त्रार्थ हिन्दी में करते थे। हिन्दी का प्रचार व प्रसार इस संगठन का अंग रहा है। देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी होनी चाहिए। अनेक पत्र-पत्रिकाओं तथा ग्रन्थों के माध्यम से आर्य समाज ने हिन्दी भाषा को आगे बढाया। स्कूलोंगुरुकुलों व अन्य संस्थाओं में हिन्दी माध्यम को ही वरीयता दी। हिन्दी भाषा के द्वारा देश के स्वाभिमान की रक्षा में आर्य समाज का उल्लेखनीय योगदान रहा है।

आर्य समाज ने देशधर्मजातिसंस्कृतिसभ्यता आदि के आदर्श गौरवपूर्ण स्वरूप की रक्षा और प्रचार-प्रसार हेतु अनुकरणीय भूमिका निभाई है। इसका स्वस्थवैज्ञानिकआधुनिक उपयोगी व तकसंगत चिन्तन एवं दिशाबोध प्रत्येक क्षेत्र में रहा है। संक्षेप में यहॉं कुछ क्षेत्रों में देन का विवेचन रखा है। इसके अतिरिक्त राजनीतिअध्यात्मशिक्षाशुद्धि आदि के क्षेत्रों में भी बौद्धिक दृष्टि दी है। जैसा कि छटा नियम हैसंसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्‌देश्य हैं। इसी आधार पर इसकी विचारधारा में विशालताउदारता व व्यापकता रही है।

आर्य समाज संसार को जीवन-जगत के प्रत्येक क्षेत्र में सीधासच्चा व सरल मार्ग प्रशस्त करता है। इसकी विचारधारा में तर्क और विज्ञान का समन्वय है। वर्तमान समस्याओं के निराकरण में आर्य समाज अहं भूमिका दे सकता है। बशर्ते यह संस्था संगठित होकर चले। आज इसमें भी बिखराव व भटकाव आने लगा है। मूल उद्‌देश्य से हटने लगी है। आज आर्यसमाज की जागरूकता और विज्ञान सम्मत बौद्धिकता की संसार को बड़ी आवश्यकता है। आज पुन: धर्मसंस्कृतिभक्तिपरमात्मायोग आदि के क्षेत्र में पाखण्डआडम्बरढोंग व प्रदर्शन फैल रहे हैं। इसको यदि कोई सत्यस्वरूप व यथार्थ दृष्टि दे सकता हैतो मात्र आर्य समाज की विचारधारा ही दे सकती है। अत: इसके कर्णधारों को इसके प्रचार-प्रसार के लिए गम्भीरता से चिन्तन और मनन करना चाहिए।लेखक- डॉ. महेश विद्यालंकार

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Arya Samaj has played an exemplary role to protect and propagate the ideal glorious form of country, religion, caste, culture, civilization etc. Its healthy, scientific, modern useful and reasonable thinking and direction has been in every field. In short, here is a discussion of the loan in some areas. Apart from this, intellectual vision has also been given in the areas of politics, spirituality, education, purification etc. As the sixth rule, benefiting the world is the main objective of this society. On this basis, its ideology has been vast, liberal and comprehensive.

 

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